शनिवार, 21 मार्च 2009

दिल्ली के धरातल से

ये नए मिजाज का शहर है जरा फसलोसे मिला करो
कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से

2 टिप्‍पणियां:

  1. मुकेश जी आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है.
    आपने सही कहा यह फासलों का शहर है , लेकिन मेरा मानना है की यह शहर सपनों का भी है.

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